कलाकार की मौत

कलाकार हमारी व्यवस्था का हिस्सा होता है । व्यवस्था में हुए मूलभूत परिवर्तन का प्रभाव उसके जीवन पर पडता है । जहाॅ एक प्रतिक्रिया होती रहती है । कलाकार हमेशा एक मानसिक बौधिक भावनात्मक प्रतिक्रिया से गुजरता है । उसकी अभिव्यक्ति में व्यवस्था का आंतरिक चित्रण होता है । प्रश्न यहां यह उठता है कि क्या कलाकार व्यवस्था के प्रभाव से मुक्त हो कर कोई ऐसी रचना कर सकता है ? क्या कलाकार अपनी कला को एक हथियार की तरह उपयोग कर व्यवस्था में व्याप्त असंतोष अन्याय शोषण पर प्रहार करता है ? कौन सी कला रिलेवन्ट होगी किस कला के साथ आम लोग जुड पायेंगे ? या कलाकार आम जनमानस के साथ उसकी भावना विचार के साथ जुड पायेगा ? उदाहरण के तौर पर एक ही काल में दो कलाकारो की अभिव्यक्ति को देखे । बकिमचंद की रचना आनंदमठ के गीत बंदेमातरम और रविन्द्रनाथ की रचना जण गण मन अधिनायक जय हे । दोनो में जनसमूह के हृदय के करीब कौन हो सकता है ? और किसे जनसमूह के करीब लाया गया। आज इस पर बहस हो सकती है । कलाकार को हमेशा से सत्ता के अधीन सत्ता के लिए सत्ता के अनुसार काम करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है । पर आप देखेगे कि जो...