सफर अभी बाकी है

शाम हो चुुुुकी थी । प्रो सहाब अपने घर के बाहर खडे हो कर एकटक घर को देख रहे थे । उनकी ऑखे अतित की गहराई मेें खोई हुुई थी ।उनके मानस पटल पर सुचित्रा और उनकी तस्वीर एक के बाद एक उभरती विलीन होती जा रही । सुचित्रा के साथ बिताये एक एक पल आज उनकी ऑखों के सामने फिर से जीवित होने लगे थे । जिसमें हंसती हुई सुचित्रा, किचन में काम करती हुई सुचित्रा, नीम का पेड लगाती हुई सुचित्रा , टेलीफोन पर बात करती हुई सुचित्रा ।उसकी बाॅहो में समाती हुई सुचित्रा, बरामदे में खडी हो कर उसका इंतजार करती हुई सुचित्रा ,उससे नाराज हो कर खामोश बैठी सुचित्रा , और उसे छोड कर ,,,,,जिन्दगी इतनी जल्दी मोड ले लेगी पता नही था।कल तक जो अपना था, अपना घर था आज अपना नही रहा । कल इस घर में कोई और रहने आ जायेगा । इसमें जो सुचित्रा और उनकी यादे बसी है । उसकी जो महक है वह नही रहेगी । सब कुछ बदल जायेगा ,मैं नही चाहता कि कोई मेरी यादो को इस घर से मिटा दे । आखिर यादेे ही तो है बस सिर्फ यादे । जीने के लिए बस एक ही सहारा ।इस याद को इस घर से मिटने नही दूंगा ,,,, यह घर खरीद लूगा अगर वह ना बेचे तो किराये पर ले लूगा । इतना ब...