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Showing posts from July, 2020

सफर अभी बाकी है

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शाम हो चुुुुकी थी । प्रो सहाब अपने घर के बाहर खडे हो कर एकटक घर को देख रहे थे । उनकी ऑखे अतित की गहराई मेें खोई हुुई थी ।उनके मानस पटल पर सुचित्रा और उनकी तस्वीर एक के बाद एक उभरती विलीन होती जा रही । सुचित्रा के साथ बिताये एक एक पल आज उनकी ऑखों के सामने फिर से जीवित होने लगे थे । जिसमें हंसती हुई सुचित्रा, किचन में काम करती हुई सुचित्रा, नीम का  पेड लगाती हुई सुचित्रा , टेलीफोन पर बात करती हुई सुचित्रा ।उसकी बाॅहो में समाती हुई सुचित्रा, बरामदे में खडी हो कर उसका इंतजार करती हुई सुचित्रा ,उससे नाराज हो कर खामोश बैठी सुचित्रा , और उसे छोड  कर ,,,,,जिन्दगी इतनी जल्दी मोड ले लेगी पता नही था।कल तक जो अपना था, अपना घर था आज अपना नही रहा । कल इस घर में कोई और रहने आ जायेगा । इसमें जो सुचित्रा और उनकी यादे बसी है । उसकी जो महक है वह नही रहेगी । सब कुछ बदल जायेगा ,मैं नही चाहता कि कोई मेरी यादो को इस घर से मिटा दे । आखिर यादेे  ही तो है बस सिर्फ यादे । जीने के लिए बस एक ही सहारा ।इस याद को इस घर से मिटने नही दूंगा ,,,, यह घर खरीद लूगा अगर वह ना बेचे तो किराये पर ले लूगा । इतना ब...

सफर अभी बाकी है ,,,,

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सुचित्रा रिश्ते खूबियों से नही चलते रिश्तो तो एक दूसरे की कमियों को सहन करने से जिन्दा रहती है । एक दूसरे की कमियों पर परदा डालना ही पडता है । तुम दोनो इस बात को समझ नही पाये। मानस ने गलती की है पर तुमने भी सही नही किया। भावना से काम लिया और रिश्ता तोड कर चली आई । उसकी गलती की वजह खोजती तो शायद तुम दोनो एक दूसरे के करीब आ जाती ।पर तुम दोनो ही बुद्धिमान हो बुद्धि की तराजू में रिश्तो को तौलते हो । क्या पाया क्या खोया । तुम गलत हो ,,मैं सही हूं ,,,तुमने मुझे क्या दिया? तुम मुझे क्या दे सकते हो । रिश्तो का पोस्टमार्टम कर दिया। रिश्ते ठ टुकडो में बंट कर रह गई । ठंडे दिमाग से सोचो अगर तुम आनंद के साथ संबध स्थापित कर लेती और मानस को पता चलता तो क्या होता ? वही तलाक , , तब तुम दोषी होती , बेटी रिश्तो को बनाने में रोज मेहनत करनी पडती है ।उसकी जड़ो में समझदारी की मिट्टी ,प्रेम  की भावना का पानी देना पडता है ।कमजोरियो को माफ करने  के लिए मन को तैयार रखना पडता है । खुद दर्द सह कर दूसरो को खुशी देनी पडती है । तब संबध चलता है । सुचित्रा खिडकी के पास बैठी सब सुन रही थी । उसका चेहरा भावहीन हो...

सफर अभी बाकी है ,,,,

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 टैक्सी हाईवे पर दौड रही थी । पिछली सीट पर सुचित्रा बैठी खिडकी के बाहर पीछे छूटते दृश्यों को देख रही थी । जीवन में इतना कुछ बदल जायेगा वह भी इतनी जल्दी ।कभी सोचा ना था । मानस मै तुमसे दूर तो जा रही हूं पर तुमसे अलग नही हो पाई हूं । समय लगेगा या फिर समय भी हार जायेगा और तुम्हारी यादे साथ साथ चलती रहेगी । तुमने जो किया उससे मुझे कोई शिकायत नही है पर बोल कर बता कर करते तो मेरे भीतर का विश्वास बना रहता । अब टूटे विश्वास को कैसे जोड़ कर फिर किसी पर विश्वास करू ? नही कर पाऊंगी ,तुमने मुझे वो एहसास दिया कि मेरा विश्वास मुझे छोड कर चला गया । मानस बहुत मुश्किल होगा बिना विश्वास के जीना पर मुझे जीना होगा । शायद जिन्दगी मुझे फिर से जीना सीखा देगी । यह सोचते सोचते सुचित्रा ने अपनी ऑखे बंद कर ली,,तभी ड्राईवर ने टेप चला दिया ,,गाने बजने लगे,आदमी मुसाफिर है आता है जाता है ,,आते जाते रस्तो पे यादे छोड जाता है । सुचित्रा गाना सुन कर एक बार ऑखे खोल कर सामने देखी फिर ऑखे बंद कर ली । गाना बजता रहा । टैक्सी सडक पर भागती जा रही थी । डिम्पल बहुत देर से आनंद को देख रही थी आनंद उसके साथ होते हुए भी साथ नही...

सफर अभी बाकी है

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26 नंबर एपिसोड   आधी रात बीत चुकी थी सुचित्रा मैम के बंद घर में टेलिफोन की घंटी लगातार बज बज कर चुप हो जाती है । अ अपने घर से टेलीफोन लगा लगा कर परेशान हो रहा था । छोटी मां अ के इस हरकत पर अपने कमरे से नज़र रखी हुई थी। अ परेशान हो कर चुप चाप बैठ गया ।उसकी समझ में नही आ रहा था कि मैम फोन क्यो नही उठा रही है । हजार तरह की नेगेटिव विचार उसके मन को डसने लगे। वह कुछ पल तक चुपचाप पडा रहा फिर उसे उसने जीत को फोन लगाया।  फोन जीत के पापा ने उठाया भारी आवाज में बोले हैलो कौन ,,आवाज सुन कर अ डरते हुए बोला अंकल जी मैं जीत का दोस्त आनंद बोल रहा हूं । इतनी रात गये तुमने क्यो फोन किया ,क्या इमरजेन्सी आ गई । वह अंकल जी मुझे जीत से बात करनी है । इतनी रात गये क्या बात करनी है ? मुझे बताओ मैं जीत को बोल दूंगा। अंकल मुझे उससे ही बात करनी है ।वह गधा सौ रहा है और सोते हुए गधो को मैं नही उठाता ,,अब बोलो तुम्हे क्या बोलने हैं ।अंकल गुड नाईट । गुड नाईट सौ जाओ । इतना बोल अंकल फोन काट दिये । अ और परेशान हो गया।   वर्षा से अ कि परेशानी देखी नही गई । वह अपने रूम से निकल कर लिविंग रूम में आ गई।अ ...

सफर अभी बाकी है

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अ अभी घर के भीतर पहूंचा ही था कि वर्षा यानी अ की छोटी मां बोली मेजर सहाब का फोन आया था । उन्होने बताया की तुम फॉरेस्ट के तरफ चले गये थे। हां चला गया था अ अनमना तरीके से जवाब दिया और अपने कमरे के तरफ जाने लगा । तभी छोटी मां अ का रास्ता रोकते हुए बोली ,,मुझे तुम्हारी इस हरकत के कारण मेजर सहाब को साॅरी बोलना पड़ा।  क्या तुम्हे नही लगता कि तुम सॉरी फील करो । मैडम मैं मेजर सहाब को सॉरी बोल चूका हूं बात वही खत्म हो गई थी फिर उनको क्या जरूरूत थी आपको फोन करने की ? जरूरूत थी इसलिए उन्होने फोन किया छोटी मां थोडा गुस्से में बोली मैं तुम्हारी मां हूं इसलिए फोन किया । आप मेरे पापा की पत्नी है मेरी मां मर चुकी है और उसकी जगह आप नही ले सकती । आपको मेरे कारण जो शर्मिदगी उठानी पडी उसके लिए आई एम सारी मैडम ।इतना बोल कर अ तेजी से अपने कमरे में चला गया । तभी दादी जी बैठक में आई और बोली बहूं उसे माफ कर दो बिन मां का बच्चा है थोडा गुस्से हो जाता है पर दिल का सोना है सोना ,देखना एक दिन  वह तुम्हे मां कह कर पुकारेंगा । बस थोडा धर्य रखो और प्यार से काम लो । मां जी भगवान ने औलाद दी और बहुत जल्द छीन लि...

सफर अभी बाकी है

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आधी रात से अधिक बीत चुकी थी । सुचित्रा की नींद खुल गई।  वह उठी और अपने लिए चाय बनाई और खिडकी के पास आ कर खडी हो गई ।चाय के कप से उठती गरम गरम भाप और उस भाप में चाय की महक से सुचित्रा सजग हो गई ।  वह नींद की शून्यता से बाहर निकल कर शब्दों की दुनियां में आ गई । उसकी स्मृतियां जागृत होने लगी । सोने से पहले उसकी अंतिम स्मृति उसे याद आ गई । मानस का स्पर्श और आनंद का एहसास । जिन्दगी का मैथ और जिन्दगी की कविता । सब कुछ जो बीत गया उस मैथमैटिकल जीवन मे उसके बीच कही कविता की दो चार लाईन थी । जिसने मेरे मन के तार को छेड़ दिया था । एक सरगम  तरंग की तरह  मेरे जीवन में फैलता चला गया था और  बाद में वह तरंग कही खोता चला गया । वापस मुझ तक नही आया । लंबे समय के बाद  यह वही तरंग है जो वापस लौटा है । क्या यह भी कुछ दूर साथ चल कर कहीं खो जायेगा। हो सकता है, यह भी हो और यह ना भी हो । पर भीतर जिन्दगी बदलने की मांग कर रही है । जब मेरे भीतर मांग कर रही है तो क्या मानस के भीतर मांग नही कर रही होगी ? जरूरू मांग करती होगी पर मानस उस मांग की पूर्ति करने में खुद को सक्षम नही पा रहे होगे...

सफर अभी बाकी है

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 सुचित्रा बाहर बरामदे में निकल कर  खडी हो गई। कुछ पल बीतेे तो उसे लगा कि आनंंद उसके बगल मेें खडा है । वह झटके से पलट कर देेेेखी तो वहां कोई नही था। पर उसके वहां होने  का एहसास मैैम को हो रहा था । उसके अस्तित्व की जो  महक है उसे लगातार मैैैम अपने भीतर महसुस कर रही थी । यह एहसास  कितना सहज सरल है। उस जीवन को फिर से जीने के लिए मन व्याकुल हो रहा है । आनंद तुम्हारे साथ बिताये पल जीवन ऊर्जा से भरपुर थे। सच्चे असली पल थे । जिसे आज भी याद कर मन  जीवन ऊर्जा से भर जाता है । उन पलों से एक रिश्ता सा बन गया है।  जिसे किसी नाम की जरूरूत नही है । वह बिना नाम के ही अच्छे ,,उस दिन मे रे कंधे उसके आंसुओ से भीग गये थे । मानो वो आंसू नही संवेदनाओ का सैलाब हो । कितना कुछ उसके भीतर दबा पड़ा था । क्या कोई डाॅक्टर किसी मनुष्य को बाहर से देख कर यह  बता सकता है कि इसके दिल में क्या छुपा है ? कितना रहस्मय है सब कुछ ,,   इस रहस्य का ना कोई अंत है और ना कोई इसकी शुरूवात है ? जिन्दगी क्या है ? यह  सवाल अगर सवाल है तो इसका क्या कोई जवाब भी हो सकता है । हा  ...

सफर अभी बाकी है

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अ तेज दौड रहा था सामने लोगो की भीड थी जिसके बीच रास्ता बनाता हुआ अ तेजी से दौडते हुए आगे निकल रहा था । उसके साथ उसके पीछे बहुत से लोग दौड रहे । अ सभी को पीछे छोड़ते हुए आगे बड गया । एक समय ऐसा भी आया की अ अकेले दौड रहा था उसके साथ और उसके आगे दौडने वाले लोग बहुत पीछे छूट गये थे इतने पीछे की दूर तक दिखाई नही दे रहे थे । अ दौडते हुए एक मैदान में पहूंचा जहां बीच मैदान में एक सुखा लंबा पेड था जिसके उपर तीन शाखाएं निकली हुई थी। अ तेजी से पेड पर चढ़ना शुरू किया और कुछ ही पलों में अ वो तीन शाखाओं के नीचे पहूंचा की वह पेड एक घोडा बन गया और एक खंम्बा उसके हाथ में आ गया अब अ घोड़े पर दौडने लगा।  घोडा बहुत मजबुत और समझदार बिना लगाम के अ को लेकर दौडने लगा। तभी एक आदमी बोला ठहरो मैं झड़ा ला कर देते हूं वह आदमी झंड़ा लेने चला गया ।  तभी एक कुत्ता ब्राउन रंग का जाने कहां से आया और घोड़े के उपर बैठे अ के सीने पर प्यार से चढ़ते हुए उसका मुहं चाटने लगा । ऐसा कुते ने दो बार किया । और नीचे उतर गया इस बीच कोई लगातार अ की तस्वीर लेता रहा । अंतिम बार जब कुत्ता अ का मुहं चाट कर नीचे उतरा तो अ कि नींद...

सफर अभी बाकी है

जीत जैसे ही रेलवे स्टेशन से बाहर निकाल तो उसके सामने वही सडक थी जिस वह बर्षों से जानता था पर आज वह सडक उसे अपरिचित से लगा । उसने नज़र घुमा कर चारो तरफ देखा तो वही सब कुछ था दुकानें  , सडक पर चलते लोग ,लोग की भीड । सडक पार करते स्कूल के बच्चे  ।खोमचे वाले भिखारी ,मंदिर ,मंदिर में बजती घंटियां ,नुक्कड़ पर कुल्हड पर चाय पीते लोग।पर कुछ बदल गया था उसके भीतर कुछ टूट कर उससे अलग हो गया था ।  उसे एक खालीपन सा लगा जैसे वह अपने ही खाली घर में खडा हो । इस घर का जो खालीपन था  उसे चुभ रहा था । सामने जो उसका शहर था । वह उसे सुना सुना सा लगने लगा ।  उसके दिल से अ चीखा अबे क्या सोच रहा है मै हूं तेरे साथ । कमीन तु इतना इमोशनल कब से हो गया बे ,,चल साईकिल निकाल मै तेरे साथ साथ चल रहा हूं। यह सुन जीत मुस्कुरा दिया और बोला कमीने तु जा कर भी मेरे भीतर से जा नही सकता । पर यार पहली बार लाईफ में अपना शहर ही अजनबी सा लगा है । वाह बेटा तु तो कलाकार होते जा रहा है । चल साईकिल उठा और मैम तक मेरा मैसज पहूंचा दे ,,अरे हा यार मैं तो भूल रहा था। उस बंद लिफाफे का खोल कर देखना भी है । तु कमीना ...

सफर अभी बाकी है

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जिन्दगी के कैनवास पर एक नई तस्वीर बनी थी जिसमे दो दिलो  ने अपनी जज्बात का इजंहार किया था । रात आधी बीत चुकी थी सुचित्रा अपने घर मेें सोफे पर बैठी थी । आज उसकी ऑखो ने नींद को इंकार कर दिया था । बार बार वह तस्वीर उसके जेहन मे उभरती और सुचित्रा से सवाल करती कि मुझे क्या नाम दोगी ? सुचित्रा इस सवाल पर खामोश हो जाती । उसके पास कोई एक सटीक उत्तर नही था । क्या यह तस्वीर बेनाम नही रह सकती ,,बेनाम ही तो है । हम जिस रिश्तो को नाम देते है कुछ दिनो बाद वो नाम सिर्फ नाम ही तो रह जाता है । रिश्ते पीछे किसी गली ,किसी मोड पर ,ठहर जाते है और हम नाम के साथ आगे बडते रहते है । नाम रिश्ता नही है  और ना हो सकता है , नाम से रिश्ता नही बनता ,रिश्ता तो बस एहसास है । एहसासो का सफर है । जब तक है तब तक है किसी दिन कहीं मन की गलियों में छुप भी सकता है और फिर किसी मोड पर अपनी बाहें फैला कर मिल भी सकता है । मैं इस तस्वीर को कोई नाम नही देना चाहती ,कोई फ्रेम के भीतर इसे कैद नही करना चाहती । सुचित्रा अपनी जगह से उठी और चलते हुए घर के बरामदे में  आ गई । उसी जगह जहां वह शाम को खडी थी।अ  उसके पास खडा थ...

सफर अभी बाकी है

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। शाम हो चुकी थी रात जमीन पर धीरे _धीरे उतर रही थी । दोनो  बरामदे में रेलिंग पर अपनी कोहनी रखे खडे थे । अ बाहर  लॉन में लगे नीम के पेड़ को देख रहा था । मैम अपनी हथेली की रेखाओं को देख रही थी । उसके मन में भी एक रेखाओं का जाल विछता जा रहा था । जिन्दगी इन रेखाओ से गुजरी थी और ना जाने कहां किस मोड पर ठहर कर पीछे पलट कर देख रही थी ।रेखाओं के जाल को देख मैम को याद आ गई   अ के कापी में खीची गई आडी तिरछी रेखाओं का जाल ,जो बिलकुल उसकी हाथ की रेखाओं की तरह ही तो था । मैम अपनी हथेली को देखते हुए पुछी आनंद तुम कापी पर पेन्सिल से आड़ तिरछी रेखाएं क्यो खींचते हो  और ऐसा कर तुम्हे कैसा लगता है ? मैम मै अपने इमोशन को व्यक्त कर पाता हूं दिमाग फोकस हो जाता है । और मै रेखाओं की दुनियां में ट्रैवल करने लगता हूं। ऐसा करके अच्छा लगता है। पर आप यह क्यो पूछ रही है ? तुम्हारी रेखाओं को मैने करीब से देखा है । वह बहुत उलझे हुए भी है और दूसरे सिरे से बहुत सुलझा हुए भी है । तुम्हारी रेखा जहां से शुरू होती है  फिर वही वापस  लौटती है । एक लम्बा चक्कर लगाती है ।जैसे कई घाटी पहाड नदी पगड़...

सफर अभी बाकी है

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कभी कभी एक छोटा सा दीया उस अवचेतन के तलघर को रौशन कर देती है जहा कोई सूरज नही पहूंच सकता । मैम के अवचेतन के तलघर में एक छोटी सी दीया रौशन हो गई थी । जिसकी रौशनी में उसे वो दिखाई देने लगा था । जिसे देखना वह भूल गई थी । जीवन हो और जीवन की  तंरगे कही खामोश हो किसी तलघर में बैठ जाये ,तो जिन्दगी  बाहर चलती है   पर भीतर  जिन्दगी  कही तन्हा हो कर भटकने लगती है । वो जो चाह है वो हमारे अवचेतन की गलियों में भटकता रहता है । मैम भी अपने चेतन और अवचेतन की गलियों में भटक रही थी । रात नींद में भटकते हुए विस्तर पर गुजर गई । सुबह हुई तो वही नपी  तुली मेकअप वाली मैम समाने खडी हो गई । स्कूल जाने के लिए मैम ना चाहते हुए भी उसी लिबास को पहन लिया । जो उसे पहनना था । आज मैम ने मेकअप नही किया । बस माथे पर एक नीले रंग की बिंदी लगाई और स्कूल के लिए निकल गई । स्कूल की बस आई मैम को ले कर चली गई । खिडकी के पास बैठी मैम बाहर देख रही थी पर उनकी ऑखे अपने अतित में खोई हुई थी  । क्या वह अपने को अब तक मिस अंडरस्टेड कर रही थी । शायद हां ,,शायद नही,, यह यकीनन हां ,,कुछ कह नही सकते , हम जि...